Saturday, March 12, 2005

प्रयाणगीत

हिमाद्री तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती - स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती - अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो। असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी। सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी। अराती सैन्य सिंधु में - सुबाड़वाग्नि से जलो, प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो। - जयशंकर प्रसाद I rember my school days when we used to do "Prabhat Pheri" on Independence day and Republic day... singing this song together.... that time I didn't understood the meaning of this song... but as I see myself leaving this institute and joining my Karmabhoomi... I suddenly feel the spirit of this poem... which encourages me to excel in whatever I am going to do... A message to all the youngsters.. प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो।

1 comment:

  1. प्रयाणगीत को पढ़कर बहुत खुशी हुई । शायद पंथ की जगह पथ शब्‍द का प्रयोग होना चाहिए।

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